मैं भूलूँ भी तो कैसे, हर वक़्त तेरी याद आती है
न जाने साँस आती है, की तेरी याद आती है
ग़ज़ल कहते हुए महफ़िल में, जब खामोश हो जाऊं
मैं जतलाता तो नहीं हूँ, पर तेरी याद आती है
मेरे अंदाज़ और इस बानगी की, सुखनवरी की
कोई तारीफ करता है, तो तेरी याद आती है
ये धरती अपने साये से छुपा ले चाँद को जब भी
बहुत तड़पाता है मंजर, और तेरी याद आती है
कोई समझाए मुझको इस जहाँ और उस जहाँ के राज़
मैं क्यूँकर मिल नहीं सकता, बस तेरी याद आती है
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