Sunday, August 17, 2008

तुम


साहस के छूटने पर
सपनो के टूटने पर
आशाओं के डूबने पर
जिन्दगी से ऊबने पर
तुम आना और आकर मुझमें
एक नई शक्ति भर जाना

मुश्किलों के आने पर
ग़म के बादल छाने पर
इच्छाओं के मरने पर
जिन्दगी से डरने पर
तुम आना, और आकर मुझमें
एक नई शक्ति भर जाना,

सांसों के घटने पर
उमीदों के हटने पर
विडंबनाओं में फसने पर
तुम आना और आकर मुझमे
एक नई शक्ति भर जाना,

सपनों के महल ढहने पर
आंसुओं के बहने पर
अपनों के मुह फेरने पर
दुखों के घेरने पर
तुम आना, और आकर मुझमें
एक नई शक्ति भर जाना,

नियति के हंसने पर
विडंबनाओं के जाल में फसने पर
इच्छाओं के मरने पर
जीवन से डरने पर
तुम आना, और आकर मुझमें
एक नई शक्ति भर जाना,

मन के चंचल होने पर
चित् में हलचल होने पर
यादों के मन में बसने पर
संस्मरणों के डसने पर
तुम आना, और आकर मुझमें
एक नई शक्ति भर जाना,


फार्मूले

चुनावों के दौरान
दौड़-दौड़ कर काम करना
भाग-भाग कर उदघाटन करना
चीख-चीख कर भाषण देना
राजनीतिजौ की राजनीती के
फार्मूले हो जाते हैं
पर जाने क्यों
चुनाव जीतने के बाद
ये सभी
लंगडे और लूले हो जाते हैं

एहसास


मैं वाह वाही के पत्तल पर
अभिमान की जीब से,
प्रसंशा की जूठन चाटता हूँ,
पर मर गया हूँ या जिंदा हूँ
देखने के लिए कभी - कभी
ख़ुद को चकोटी काटता हूँ

सड़क पे पड़ी लाश देखकर, कन्नी काट जाता हूँ
मरे हुए लोगो का भी रुपया खा जाता हूँ
बाढ, आग, भूकंप से , फायदा उठाता हूँ
जितना मिलता है, उससे ज्यादा कमाता हूँ
काले-गोरे लोगो को लाठियाँ थमाता हूँ
ख़ुद को गोरों का रक्षक, कालों का मसीहा बताता हूँ

कोट पैंट पहन कर, भीख मांगने जाता हूँ
कुर्ता धोती पहन कर साधू बन जाता है
लोगो की भीड़ में मैं, चीखता चिल्लाता हूँ
मेरे आगे कोई रोये , तो मैं नींद में खो जाता हूँ
मैं मदारी के जैसा हूँ , मजमा लगता हूँ
पर मैं खेल दिखता नहीं , ख़ुद खेल जाता हूँ
राजनीती की सतरंज में, मेरे माप दंड दोहरे हैं
मेरी बिसात में दो चार नहीं, नब्बे करोड़ मोहरे हैं

में खुशिओं के प्यासे लोगो में
आंसू से भीगी पलकों में
झूंठें सपने, आशाओं आँकाक्षाओं को बांटता हूँ
पर मर गया हूँ या जिंदा
देखने के लिए कभी-कभी
ख़ुद को चकोटी हूँ





Saturday, August 16, 2008

चार आंखें


दूर जाता पलायन कर , मन ये चंचल
रोकता है टोकता है, एक बंधन चार आंखें
आंसुओं से सनी हुई , मोम की सी बनी हुई
देखती हैं एक स्वपन को, ढूँढती है अपने पन को
चार आंखें

जगता है, भागता है, अभिरणय में और वन में
ढूंढता है अंजुली भर , सुधा जल को
जो भुला दे बन्धनों को क्रन्दनो को
निशा थक के सो गई है, नींद में यह खो गई है
छोड़ आया तोड़ आया - एक सपना चार आंखें
बंद थी दिन की थकन से
देख पी न मुझे
पर देखती थी उस समय जो
एक स्वपन को अपने पन को

सनसनाती है हवा , जो बह रही विपरीत मेरे
चीरता हूँ खोजता हूँ, मार्ग अपना, ले के सपना
याद आया थी लगी ठोकर मुझे
जब चला था मैं "दिया" घर का
दिया था न ध्यान जिसपर
टीसता है - पीसता है अब जो मन को



खुशी


खुशी आती पास मेरे
लपेटन के रूप मैं
जिसे खोलो
पाओ
वही चिरपरिचित
गमों का पुलिंदा
खुशी
मानो चपला समान
चंचल
मानो मरीचिका समान
भ्रमित करने वाली
पल-पल छलती
आकर्षित करती
दिए की लो समान
जले जिसमें
हर बार
एक अभिलाषा
दम तोड़ दे जिसमें
हर बार
एक अकांचा

लाल फूल की भांति
तोड़ो जिसे
चुभें शूल
पाना चाहता हूँ खुशी को
अविराम
निरंतर
पर जब भी मिली है
लपेटन के रूप मैं
खोलो जिसे
पाओ
वही चिरपरिचित
गमों का पुलिंदा
भेद डाले ह्रदय को
क्रूरता से
ढहा दे जो
सपनो की चार दीवारी
कांप रहा हूँ मैं
भविष्य मैं घटने वाली
किसी अनिष्ट घटना को सोचकर
डरता हूँ
आशंकित हूँ
क्योंकि आज मैं बहुत खुश हूँ -बहुत खुश



नमी



उसके पास बंजर भूमि है
जिसे वो हर रोज खोदता है
पानी नही निकलता
नमी नहीं आती
पर ख़ुद भीग जाता है

एक सपना है -
जो उसके पूर्वजों ने देखा था
एक सपना है
जिसे अब वो भी बुनता है
पर न नजाने कितनी गहराई मैं धंस गया है
जिसे उसकी, तीन पीढियां
खोदते-खोदते नहीं निकल पाई
वो यह सोचता है - और फिर खोदने लगता है
तीन पीढियां पीढियां के पसीने की सिचाई से भी
नमी नहीं आयी
पानी नहीं निकला


Thursday, August 14, 2008

ख्वाब


पलकें बंद होती हैं तो ख्वाब आते हैं
पर मैं तो खुली आँख से ख्वाब देखता हूँ
इंतज़ार है तो बस पलकें बंद होने का
ताकि ख्वाब आने भी बंद हो जायें
क्योंकि कल्पना का जाल बूनके
भावनाओं का अपहरण करके
मेरी चेतना को लूट जाते हैं
देखने मैं तो ये ख्वाब अच्छे लगते हैं
पर वास्तविकता के धरातल पर भिखर कर टूट जातें हैं।