Thursday, August 14, 2008

ख्वाब


पलकें बंद होती हैं तो ख्वाब आते हैं
पर मैं तो खुली आँख से ख्वाब देखता हूँ
इंतज़ार है तो बस पलकें बंद होने का
ताकि ख्वाब आने भी बंद हो जायें
क्योंकि कल्पना का जाल बूनके
भावनाओं का अपहरण करके
मेरी चेतना को लूट जाते हैं
देखने मैं तो ये ख्वाब अच्छे लगते हैं
पर वास्तविकता के धरातल पर भिखर कर टूट जातें हैं।


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