Saturday, August 16, 2008

खुशी


खुशी आती पास मेरे
लपेटन के रूप मैं
जिसे खोलो
पाओ
वही चिरपरिचित
गमों का पुलिंदा
खुशी
मानो चपला समान
चंचल
मानो मरीचिका समान
भ्रमित करने वाली
पल-पल छलती
आकर्षित करती
दिए की लो समान
जले जिसमें
हर बार
एक अभिलाषा
दम तोड़ दे जिसमें
हर बार
एक अकांचा

लाल फूल की भांति
तोड़ो जिसे
चुभें शूल
पाना चाहता हूँ खुशी को
अविराम
निरंतर
पर जब भी मिली है
लपेटन के रूप मैं
खोलो जिसे
पाओ
वही चिरपरिचित
गमों का पुलिंदा
भेद डाले ह्रदय को
क्रूरता से
ढहा दे जो
सपनो की चार दीवारी
कांप रहा हूँ मैं
भविष्य मैं घटने वाली
किसी अनिष्ट घटना को सोचकर
डरता हूँ
आशंकित हूँ
क्योंकि आज मैं बहुत खुश हूँ -बहुत खुश



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