Sunday, September 7, 2008

नन्हा पौधा



भावनाओं के अंकुर से
अकंषाओं की सिचाई से
प्रस्फुटित हुआ
एक नन्हा पौधा
अस्चर्या जनक रूप से बढ़ता हुआ
स्तब्ध रह गया मैं
अलोकिक सुन्दरता को देखकर
चाहे अनचाहे उगा था
इसलिए हर्षित हो रहा था
इस उपलब्धि पर

सहज सुंदर
सबसे अलग
रोजाना देखता था
पल-पल बढते हुये
सौंदर्य की विभिन्य मुद्राओं मैं
निखारते हुए
अनुपम छठा बिखेरते हुये

कल्पना करता था
खिलने वाले फूलों की
सपने से बुनने लगा था मैं
छूना चाहा कई बार
डर जाता था
स्पर्श से मुरझा न जाये
फूल खिले
आशा के विपरीत
काले, भद्दे, कुरूप

विस्मित हुआ और दुखी भी
सुंदर से दिखने वाले उस पौधे की
इस परिणिति पर
आँखों मैं गड़ने से लगे थे
वे बेरौनक फूल

उखाड़ फेंका
कुंठित भाव से

नादान



मनो मेरी बात
विशवास करो
विशवास करो कि मैं नादान हूँ
फिर कहते क्यों हो
यह तो दिखाई देने वाली शय है
उन्हे परिभाषा भी तो मालूम हो
जिन्हे बताओगे
वे जान पयेगै तब
अर्थ मालूम होगा जब
देखा होगा, महसूस किया होगा
फिर किसे बताओगे
अपने आप को
या फिर अपने ही जैसे किसी को
जिसे ढूंढ़ना होगा भीड़ मैं
सबसे अलग , असाधारण
उससे कहना
कि तुम नादान हो

इसे बचाना भी है मुश्किल
मुझे मालूम है
कुछ दिनों मैं
वैसे दिखने लगोगे तुम
जैसे दीखते है सब
साथ कोई हो
जो प्रेरणा दे
टोके, गलती करने पर

संपर्क करोगे
बहार निकलोगे
कैसे कैसे रंग
अन्तर हो जाएगा फिर
तुममे और उसमें
तुम्हे सायद कई मिल जायें
पर उसे मुश्किल से मिले हो तुम

अंतहीन दिशाहीन तलाश
मुश्किल से मिले हो
इसलिए मिलकर रहो
बहार मत जाना
ताकि रंग डालें लोग
सम्भव हैअपनी दुनिया बनाना
जिसमें कुछ सीमित लोग हों
सब सफ़ेद
आपस मैं एक दूसरे से कहें
हम सब नादान हैं
मुश्किल से मिले हो
इसलिए मिलकर रहो
और उनसे कहो
कि तुम नादान हो
फूलों कि तरह
बच्चो कि तरह



फर्क


फर्क है हममैं और उनमें
हम जब बोलते हैं - तब बोलतें
वे जब चुप होतें हैं
तब भी बोलते हुए से लगते है

फर्क है हममें और उनमें
हम जब चलते है तो एक भीड़ का निर्माण करतें है
वे जब चलते हैं
तो दूसरे कई लोग रुक जाते है

फर्क है हममें और उनमें
हम बात करते है - तो पहले एक भूमिका बांधते है
वे अभी कुछ बोल भी नहीं पाते
कि लोग उनकी बातों का मतलब भी जान लेते हैं

फर्क है हममें और उनमें
हम जीते हैं - क्योंकि हमें जीना है
वे जीते हैं
क्योंकि दूसरे कई लोगो को अभी जीना है