Sunday, September 7, 2008

नन्हा पौधा



भावनाओं के अंकुर से
अकंषाओं की सिचाई से
प्रस्फुटित हुआ
एक नन्हा पौधा
अस्चर्या जनक रूप से बढ़ता हुआ
स्तब्ध रह गया मैं
अलोकिक सुन्दरता को देखकर
चाहे अनचाहे उगा था
इसलिए हर्षित हो रहा था
इस उपलब्धि पर

सहज सुंदर
सबसे अलग
रोजाना देखता था
पल-पल बढते हुये
सौंदर्य की विभिन्य मुद्राओं मैं
निखारते हुए
अनुपम छठा बिखेरते हुये

कल्पना करता था
खिलने वाले फूलों की
सपने से बुनने लगा था मैं
छूना चाहा कई बार
डर जाता था
स्पर्श से मुरझा न जाये
फूल खिले
आशा के विपरीत
काले, भद्दे, कुरूप

विस्मित हुआ और दुखी भी
सुंदर से दिखने वाले उस पौधे की
इस परिणिति पर
आँखों मैं गड़ने से लगे थे
वे बेरौनक फूल

उखाड़ फेंका
कुंठित भाव से

5 comments:

  1. "उखाड़ फेंका
    कुंठित भाव से"

    ऐसी भी क्या जल्दी थी. कुछ और करके देख लेते पहले!!



    -- शास्त्री जे सी फिलिप

    -- हिन्दी चिट्ठाकारी के विकास के लिये जरूरी है कि हम सब अपनी टिप्पणियों से एक दूसरे को प्रोत्साहित करें

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  2. स्वागत है हिन्दी ब्लॉग जगत् में,
    खूब लिखें, अच्छा लिखें - शुभकामनाएँ.

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  3. "उखाड़ फेंका कुंठित भाव से"

    उतावलापन जीवन को असफल बनाने वाला एक भयंकर खतरा है।

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  4. विस्मित हुआ और दुखी भी
    सुंदर से दिखने वाले उस पौधे की
    इस परिणिति पर
    आँखों मैं गड़ने से लगे थे
    वे बेरौनक फूल
    बहुत सटीक लिखा है आपने हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है निरंतरता की चाहत है समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें

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  5. शानदार भावनाएं, बहुत अच्छा लिखा है.. मैं कहना चाहूँगा कि आप लिखते रहें

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