Monday, October 22, 2012

बहस

हवा मैं  बांध  कर  ख़याल, तेरी  जानिब  उछाला
दिल फिर एक बार, तेरी ओर , तेरी ओर चला 

दिल-ओ-दिमाग मैं बहस है, तू मेरी है भी या नहीं




Thursday, October 18, 2012

शरारतें

आंखें दौड़ पड़ती है तेरे दीदार को वक़्त-बे-वक़्त
दिमाग भी रोकने की कोशिश नहीं करता कमबख्त

दिल-ओ-दिमाग ने आखिर शरारतें सीख ही लीं तुमसे 

Thursday, October 11, 2012

मैंने भी पुछा

ठोकरें खाई, कई जख्म भी 
गम के कई कड़वे घूँट पिए 
लफ्जो को चबाया 
कई भूखी रातों तो निगल गया वो 

उम्मीद बिछा के लेटा,
तन्हाई ओड़  के सोया तमाम उम्र 
और एक दिन इसी भूख ने खा लिया उसे 

टालस्टाय के स्वर मैं मैंने भी पुछा था उसके वजूद का कारण 
जीजस मौन है  

Tuesday, October 9, 2012

डर

अटका हूँ बूँद के मानिंद जुल्फों मैं
अगर झटक दो तो न मालूम कहाँ खो जाऊं

कम्बख्त ये जुदा होने का डर ख्वाब मैं भी सताता है   

Monday, October 8, 2012

टुकड़े

कुछ लफ़्ज होटों से फ़िसले और गिर कर टूट गए फ़र्स पर 
टुकड़े-टुकड़े से होकर पड़े थे, टूटे हुए कांच की तरह 
कुछ बिखरे टुकडों मैं, शायद तुमने अपना अक्स देखा 

और जब मुड़ने लगे तो हलकी सी इक टीस सुनाई दी मुझे 
शायद लफ्जों का कोई टूटा हुआ टुकड़ा 
चुब गया था तुम्हारे पैरों मैं  

तुम्हे दर्द मैं देखा, तो रोक न पाया मैं ख़ुदको 
सभी टूटे हुए टुकड़े, अपने हाथों से समेट कर मैंने 
भर लिए अपनी आँखों मैं

और अब दिन रात जलते रहते हैं ये, \
मेरी इन खतावार आँखों मैं 

Saturday, October 6, 2012

वो

इश्क इंसान को मासूम बना देता है
कभी जुगनू कभी परियों सा बना देता है

लिखना चाहता हूँ ग़ज़ल, एक सादा कागज पे
खुद-ब -खुद हाथ इक तस्वीर बना देता है

हाथ ख़ाली हैं मेरे पास यूँ तो कुछ भी नहीं
इक तेरा साथ बस अमीर बना देता है

कमी नहीं हैं रहनुमाओं की इस मुल्क मैं पर
कैसे कैसों को ये वजीर बना देता है

न रोक पाओगे इस बार भी इस बूढ़े को
वो निहत्थों को भी शमशीर बना देता है 

Thursday, October 4, 2012

शायद

कल शब् कुछ ख्याब तापे
कुछ यादें सेंकी 

उस शाम बड़ी देर तलक
मैं एक बूड़ी छड़ी के मानिंद
सटा हुआ उस पिल्पाये से 
तुम्हारा रास्ता तकता था

बारिश मेरे वजूद को डुबो देने की ताक में थी 
एक पल को लगा मैं चुक जाऊँगा शाम भर में  
पर कोई था जो धोकनी देता था जिस्म को 
दम देता था उम्मीद को, के तुम आओगी 

मैंने देखा तभी
बारिश मैं भीगा तुम्हारा दमकता चेहरा
मानो तुमने चाँद तोड़ के उड़स लिया हो जुल्फ में 
बूंदें पेशानी से गर्दन के दरमियाँ
फिसल रहीं थी-जल रहीं थी

तुम्हे देख के ख़ुश हो रहा था मैं
मानो के जैसे कोई छोटा बच्चा
पानी मैं कागज की नाव छोड़ के खुश होता है

मैंने पुछा नहीं फिर भी तुमने बताया मसूमियत से
के तुम्हारा 'स्कूटर' ख़राब हो गया था कहीं
या फिर कुछ और कहा था मैंने ठीक से सुना नहीं
मैं तो बस ताज़ा साँसे भर रहा था अपने सीने मैं

तुम्हे पता भी न हो शायद
ऐसे कितनी ही बार मुझे जिन्दा किया है तुमने

कल शब् ऐसे ही कुछ पुरानी बातें आयी
फिर ऐसी ही कुछ यादों के साथ सोया मैं

Tuesday, October 2, 2012

समय

दिन के समय का एक बड़ा हिस्सा बेच दिया है मैंने
एक बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी को, सस्ते दामों पे 

शाम को जो घर लौटा 
तो पत्नी ने मुश्कुरा के माँगा, समय का अपना हिस्सा 

एक हिस्सा बच्चो को दिया 
खेला, हँसा, गुदगुदाया और चुकाया खुद को 

अब दिन ढले, वक़्त का एक छोटा टुकड़ा बाकी है मेरे पास 
फुर्शत में बैठा तो तुम्हारी कुछ शरारतें याद आईं 
तुम्हारे साथ बिताये वो खूबसूरत पल  

अफ़सोस के दिन के इस हिस्से मैं भी,  मैं मैं न रहा 
चलो आज फिर इस शाम को तुम्हारे नाम किये देता हूँ 
जियूँगा फिर किसी रोज अपने लिए 

जन्मदिन मुबारक हो !!!