Thursday, October 4, 2012

शायद

कल शब् कुछ ख्याब तापे
कुछ यादें सेंकी 

उस शाम बड़ी देर तलक
मैं एक बूड़ी छड़ी के मानिंद
सटा हुआ उस पिल्पाये से 
तुम्हारा रास्ता तकता था

बारिश मेरे वजूद को डुबो देने की ताक में थी 
एक पल को लगा मैं चुक जाऊँगा शाम भर में  
पर कोई था जो धोकनी देता था जिस्म को 
दम देता था उम्मीद को, के तुम आओगी 

मैंने देखा तभी
बारिश मैं भीगा तुम्हारा दमकता चेहरा
मानो तुमने चाँद तोड़ के उड़स लिया हो जुल्फ में 
बूंदें पेशानी से गर्दन के दरमियाँ
फिसल रहीं थी-जल रहीं थी

तुम्हे देख के ख़ुश हो रहा था मैं
मानो के जैसे कोई छोटा बच्चा
पानी मैं कागज की नाव छोड़ के खुश होता है

मैंने पुछा नहीं फिर भी तुमने बताया मसूमियत से
के तुम्हारा 'स्कूटर' ख़राब हो गया था कहीं
या फिर कुछ और कहा था मैंने ठीक से सुना नहीं
मैं तो बस ताज़ा साँसे भर रहा था अपने सीने मैं

तुम्हे पता भी न हो शायद
ऐसे कितनी ही बार मुझे जिन्दा किया है तुमने

कल शब् ऐसे ही कुछ पुरानी बातें आयी
फिर ऐसी ही कुछ यादों के साथ सोया मैं

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