Thursday, October 11, 2012

मैंने भी पुछा

ठोकरें खाई, कई जख्म भी 
गम के कई कड़वे घूँट पिए 
लफ्जो को चबाया 
कई भूखी रातों तो निगल गया वो 

उम्मीद बिछा के लेटा,
तन्हाई ओड़  के सोया तमाम उम्र 
और एक दिन इसी भूख ने खा लिया उसे 

टालस्टाय के स्वर मैं मैंने भी पुछा था उसके वजूद का कारण 
जीजस मौन है  

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