मुझमें तेरी वाणी गूंजे, तेरी आवाज़ सुनाई दे
जिस और तकूँ बस तू ही तू , तेरा प्रतिबिम्भ दिखाई दे
मैं अलग न हो पाया हूँ कभी, तेरे होने के होने से
एक हो जाने की ख्वाइश का, कैसा ये रंग दिखाई दे
है कौन अलग कर पाया भला, कस्ती को दरिया लहरों को
हम एक हुए माने मिल गए, बेनाम हमारे चेहरों को
तू हाथ पकड़ चल साथ मेरे जिस और भी राह दिखाई दे
दुनिया की चाह न मंजिल की, न दर्द न आह सुनाई दे
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