कितनी खूबसूरत होती ये दुनिया, गर सबका हरम एक होता
सब इकतरह सर नवाते , सबका धरम एक होता
मुझसे क्यों अलग किया मेरे जैसा था वो बिलकुल
न होता ये अ गर हममें से वो एक होता
आज तनहा ही लौटा दरगह से एक पीर की
अय काश के उस बस्ती मैं मेरा भी मक़ा एक होता
No comments:
Post a Comment